सास ने मां बनकर किया बहू का कन्यादान, समाज को दिखाई नई राह पुत्र की आकस्मिक मृत्यु के बाद लिया था निर्णय
Waman Pote betul varta
सास ने मां बनकर किया बहू का कन्यादान, समाज को दिखाई नई राह
पुत्र की आकस्मिक मृत्यु के बाद लिया था निर्णय
3 परिवारों की मौजूदगी में आमला में संपन्न हुआ पुनर्विवाह
बैतूल। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिला निवासी सास ने अपनी विधवा बहू की शादी आमला निवासी दिलीप पाल के साथ संपन्न करवाई और कन्यादान कर समाज में नयी मिसाल पेश की है। ससुराल वालों के द्वारा उठाए गए इस कदम की हर तरफ सराहना हो रही है। इस अनोखे प्रसंग को देखकर उपस्थित सभी अतिथियों की आंखो में भी आँसू आ गए थे।
वधू प्रीति छत्तीसगढ़ जिला महासमुंद निवासी है, जिनका विवाह रवि चंतारे के साथ हुआ था। विवाह के 5 साल बाद ही प्रीति के पति का देहांत हो गया था। वहीं दिलीप पिता मौजीलाल पाल निवासी बोड़खी आमला का विवाह भैंसदेही निवासी ज्योति पाल के साथ वर्ष 2011 में संपन्न हुआ था। विवाह के 8 साल बाद ही उनकी पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया, जिनकी एक बेटी रुपाली है। मृत्यु हो जाने के बाद इन दोनों ही परिवार के सर पर मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ा था। इस विवाह से जहां एक बेटी को मां मिल गई, वहीं प्रीति और दिलीप का भी जीवन संवर गया है। प्रीति और दिलीप का पुनर्विवाह आमला में विगत 8 जुलाई को बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ। कन्यादान ससुराल पक्ष ने किया था। विवाह में प्रीति के मायके पक्ष के लोग भी मौजूद रहे थे। कुल तीन परिवारों की मौजूदगी में विवाह को संपन्न किया गया था। विदाई के दौरान दुल्हन सहित उपस्थित सभी की आंखे भर आई थी।
–पाल समाज ने वर-वधू को दिया आशीर्वाद–
विधवा पुनर्विवाह कि यह पहल पाल समाज द्वारा की गई है। जिला पाल धनगर समाज बैतूल के प्रचार-प्रसार सचिव प्रकाश पाल ने बताया कि विवाह में छत्तीसगढ़ जिला राजनांदगांव निवासी ससुराल पक्ष से सास लीलाबाई चंतारे, जेठ ललित कुमार चंतारे, जेठानी जयश्री चंतारे ने बहू प्रीति का बेटी के रूप में कन्यादान किया। विवाह में जिला पाल समाज बैतूल के प्रकाश पाल, गणेश पाल, रमेश पाल, गोरेलाल पाल, सुनील पाल, शैलेंद्र पाल सहित ससुराल पक्ष से मधु धावले, अनूप उपासे, सतीश पाल, लक्ष्मी प्रसाद पाल, पाल समाज अध्यक्ष छत्तीसगढ़ मदन साटकर, उदय प्रसाद पारखे मौजूद रहे। सभी ने वर-वधू का आशीर्वाद देकर उज्जवल भविष्य की कामना की।
–समय के साथ बदलने लगी सोच–
उल्लेखनीय है कि 18 वीं शताब्दी के दौरान ईश्वर चंद विद्यासागर आदि महापुरुषों ने विधवा विवाह को शुरु करने का प्रयास किया था, लेकिन इसके बाद भी बेटियों के लिए आज भी बंदिशें लगी हुई है। अब समय के साथ-साथ समाज की सोच बदलने लगी है। विधवा विवाह के लिए किए गए प्रयास अब रंग लाने लगे हैं, अब बेटियों और बहुओं के प्रति लोगों का नजरिया बदलने लगा हैं। आज भी वह सुखद पल आता है जब ससुराल वाले हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 के तहत बहू को बेटी बनाकर उसका कन्यादान करते है। कन्यादान करते समय उनकी आंखें भीग जाती है, लेकिन उन्हें खुशी इस बात की होती है कि एक बेटी की जिंदगी संवर रही है।
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