निमाड़ का प्रसिद्ध नागलवाड़ी शिखरधाम:2 साल बाद लग रहा नागपंचमी पर मेला; यहां रात नहीं रुकते किन्नर
By Betul Varta Waman Pote
निमाड़ का प्रसिद्ध नागलवाड़ी शिखरधाम:2 साल बाद लग रहा नागपंचमी पर मेला; यहां रात नहीं रुकते किन्नर
नागलवाड़ी।।सेंधवा।।
नागपंचमी मंगलवार को है। इस दिन निमाड़ के प्रसिद्ध नागलवाड़ी शिखरधाम स्थित भीलट देव मंदिर में लाखों भक्त दर्शन करने पहुंचते हैं। कोरोना के कारण दो साल बाद यहां मेले का आयोजन हो रहा है। मंदिर के पुजारी राजेंद्र बाबा ने बताया कि इस साल 40 घंटे तक शिखर धाम मंदिर के पट खुले रहेंगे। 1 अगस्त सुबह 6 बजे से 2 अगस्त की रात 10 बजे तक मंदिर के पट खुले रहेंगे। इस दौरान भोजनशाला बंद रहेगी। मंदिर समिति के हीरालाल सोलंकी ने बताया कि मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के लिए 500 वालंटियर और करीब 500 पुलिसकर्मी जगह- जगह तैनात रहेंगे। मेले के दौरान 8 से 9 लाख श्रद्धालुओं के शिखरधाम आने की संभावना है।
गांव में रात नहीं रुकते किन्नर
मुख्य पुजारी राजेंद्र बाबा ने बताया कि करीब 200 साल पहले किन्नर के मन आया था कि महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए यहां आती हैं। इसलिए किन्नर ने भी भीलट देव से संतान प्राप्ति की मन्नत मांग ली थी। भीलट देव के आशीर्वाद से किन्नर को गर्भ ठहर गया था। बाद में उसकी मौत हो गई। इसके बाद से मान्यता है कि कोई भी किन्नर यहां रात नहीं रुकता। सूर्यास्त तक किन्नर गांव की सीमा से बाहर चले जाते हैं। सेगांव रोड पर किन्नर की समाधि शिला लगी हुई है।
853 साल पुराना है भीलट देव का इतिहास
बताते हैं कि 853 साल पहले हरदा जिले में नदी किनारे स्थित रोलगांव पाटन के एक गवली परिवार में बाबा भीलट देव का जन्म हुआ था। इनके माता-पिता मेदाबाई और नामदेव शिवजी के भक्त थे। इनकी कोई संतान नहीं थी, तो उन्होंने शिवजी की कठोर तपस्या की। इसके बाद बाबा का जन्म हुआ। कहानी है कि शिव-पार्वती ने इनसे वचन लिया था कि वो रोज दूध-दही मांगने आएंगे। अगर नहीं पहचाना, तो बच्चे को उठा ले जाएंगे। एक दिन इनके मां-बाप भूल गए, तो शिव-पार्वती बाबा को उठा ले गए। बदले में पालने में शिवजी अपने गले का नाग रख गए। इसके बाद मां-बाप ने अपनी गलती मानी। इस पर शिव-पार्वती ने कहा कि पालने में जो नाग छोड़ा है, उसे ही अपना बेटा समझें। इस तरह बाबा को लोग नागदेवता के रूप में पूजते हैं।
संतान सुख के लिए पहुंचते हैं दंपती
पौराणिक कथा के अनुसार बाबा भीलट देव का विवाह बंगाल की राजकुमारी राजल के साथ हुआ था। उन्होंने अपनी शक्तियों से जनमानस की सेवा के लिए ग्राम नागलवाडी को चुना। साथ ही अपनी तपस्या के लिए समीप ही सतपुड़ा की ऊंची पहाड़ी के शिखर को चुना। संतान के सुख से वंचित दंपती यहां बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। बाबा भीलट देव ने बचपन में ही अपनी चमत्कारिक लीलाओं से परिवार व ग्रामवासियों को आश्चचर्यचकित कर दिया था।