जिस कंपनी ने बनाया था भारत को गुलाम, अब एक भारतीय ही बना उसका मालिक
: भारत को गुलामी की बेड़ियां पहनाने में ईस्ट इंडिया कंपनी का नाम महत्वपूर्ण है. इसी कंपनी ने मुगल बादशाह से व्यापार करने का अधिकार हासिल किया और तमाम तिकड़मों के दम पर धीरे-धीरे देश को गुलाम बनाते चली गई. 1857 के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत का नियंत्रण अपने हाथों ले लिया था, लेकिन उसके पहले करीब दो सदियों तक इस कंपनी ने भारत पर शासन किया था.
2010 में इंडियन बिजनेसमैन ने खरीदा
नई दिल्ली,
18 अगस्त 2022,
भारत पर सदियों तक रहा ईस्ट इंडिया कंपनी का राज
जहाज लूटने से हुई थी कंपनी के कारोबार की शुरुआत
: पूरा देश सोमवार को स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ मनाई है. इसके उपलक्ष्य में पिछले साल भर से देश में ‘आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के बाद से अब तक भारत की यात्रा बड़ी रोचक रही है. इन 75 सालों के दौरान भारत एक बड़ी आर्थिक ताकत बनकर उभरा है. भारत की बढ़ती आर्थिक हैसियत का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि जिस ‘ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत को गुलाम बनाया था, आज एक भारतीय बिजनेसमैन ही उस कंपनी का मालिक बन बैठा है.
दो सदियों तक रहा भारत में कंपनी राज
ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) का नाम भला कौन भारतीय नहीं जानता होगा! जिस किसी ने 8वीं-10वीं तक भी इतिहास पढ़ा है, उसे इस कंपनी का नाम भली-भांति ज्ञात होगा. यहां तक कि जो लोग कभी स्कूल नहीं गए, वे भी कंपनी राज (Company Raj) के नाम से ईस्ट इंडिया कंपनी से गाहे-बेगाहे अवगत हैं. 17वीं सदी की शुरुआत में यानी सन 1600 ईस्वी के आस-पास भारत की जमीन पर पहला कदम रखने वाली इस कंपनी ने सैकड़ों साल तक हमारे देश पर शासन किया. 1857 तक भारत पर इसी कंपनी का कब्जा था, जिसे कंपनी राज के नाम से इतिहास में पढ़ाया जाता है.
अब बन गई है ई-कॉमर्स कंपनी
एक हिसाब से कहें तो ईस्ट इंडिया कंपनी भारत की पहली कंपनी थी, भले ही यह भारतीय न होकर अंग्रेजों की थी. इसी कंपनी ने भारत को गुलामी की बेड़ियां भी पहनाई. एक समय यह कंपनी एग्रीकल्चर से लेकर माइनिंग और रेलवे तक सारे काम करती थी. अब मजेदार है कि भारत को गुलाम बनाने वाली इस ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिक भारतीय मूल के बिजनेसमैन संजीव मेहता (Sanjiv Mehta) हैं. मेहता ने ईस्ट इंडिया कंपनी को खरीदने के बाद इसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म बना दिया. अभी यह कंपनी चाय, कॉफी, चॉकलेट आदि की ऑनलाइन बिक्री करती है.
ईस्ट इंडिया कंपनी के पास थी अपनी सेना
ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना सन 1600 में 31 दिसंबर को हुई थी. इस कंपनी को बनाने के पीछे एकमात्र उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्यवाद और औनपिवेशीकरण को बढ़ावा देना था. ब्रिटेन के उस दौर के बारे में एक कहावत बहुत प्रचलित है कि ब्रिटिश राज में सूरज कभी अस्त नहीं होता. सूरज के परिक्रमा पथ की परिधि से भी ब्रिटिश साम्राज्य को बड़ा बना देने में सबसे अहम योगदान इसी ईस्ट इंडिया कंपनी का था. कंपनी मूलत: व्यापार करने के लिए बनाई गई थी, लेकिन उसे कई विशेषाधिकार प्राप्त थे, जैसे युद्ध करने का अधिकार. कंपनी को ब्रिटिश राज ने यह अधिकार अपने व्यापारिक हितों की रक्षा करने के लिए दिया था. इस कारण ईस्ट इंडिया कंपनी के पास अपनी ताकतवर सेना भी हुआ करती थी.
स्पेन और पुर्तगाल से होड़ में बनी कंपनी
1600 के दशक के दौर में साम्राज्यवाद और व्यापार की होड़ में स्पेन और पुर्तगाल का जलवा था. ब्रिटेन और फ्रांस इसमें देर से उतरे थे लेकिन तेजी से दबदबा बढ़ा रहे थे. पुर्तगाल के नाविक वास्कोडिगामा के भारत आने के बाद यूरोप में बड़ा बदलाव आया. वास्कोडिगामा अपने साथ जहाजों में भरकर भारतीय मसाले ले गया था. यूरोप के लिए भारतीय मसाले अनोखी चीज थी. इन मसालों से वास्कोडिगामा ने अकूत संपत्ति अर्जित की. इसके बाद पूरे यूरोप में भारतीय मसालों की महक पसर गई. भारत की संपन्नता के चर्चों ने भी यूरोपीय साम्राज्यवादी देशों को यहां दबदबा बनाने के लिए प्रेरित किया. ब्रिटेन की ओर से यह काम किया ईस्ट इंडिया कंपनी ने.
जहाज लूटकर किया पहला व्यापार
इस कंपनी को पहली सफलता हाथ लगी थी पुर्तगाल का एक जहाज लूटने से, जो भारत से मसाले भरकर ले जा रहा था. ईस्ट इंडिया कंपनी को उस लूट में 900 टन मसाले मिले. इसे बेचकर कंपनी ने जबरदस्त मुनाफा कमाया. यह उस समय की पहली चार्टेड ज्वाइंट स्टॉक कंपनियों में से एक थी, यानी कहें तो अभी के शेयर मार्केट में लिस्टेड कंपनियों की तरह कोई भी इन्वेस्टर उसका हिस्सेदार बन सकता था. लूट की कमाई का हिस्सा कंपनी के इन्वेस्टर्स को भी मिला. इतिहास की किताबों में बताया जाता है कि लूट से किए गए पहले व्यापार में ईस्ट इंडिया कंपनी को करीब 300 फीसदी का जबरदस्त मुनाफा हुआ था.
ऐसे बढ़ा भारत में कंपनी का वर्चस्व
भारत में सर थॉमस रो ने मुगल बादशाह से ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए व्यापार का अधिकार हासिल किया. कंपनी ने कलकत्ता (अभी कोलकाता) से भारत में बिजनेस की शुरुआत की और बाद में चेन्नई-मुंबई भी उसके प्रमुख व्यापारिक केंद्र बने. भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी को सबसे पहले फ्रांसीसी कंपनी ‘डेस इंडेस’ का मुकाबला करना पड़ा. 1764 ईस्वी की बक्सर की लड़ाई कंपनी के लिए निर्णायक साबित हुई. इसके बाद कंपनी ने धीरे-धीरे पूरे भारत पर अधिकार स्थापित कर लिया. 1857 ईस्वी के विद्रोह के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत का शासन कंपनी के हाथों से छीनकर अपने हाथों ले लिया. बहरहाल अब यह दुनिया की सबसे अमीर कंपनियों की गिनतियों में कहीं नहीं ठहरती. भारतीय मूल के संजीव मेहता ने 2010 में 15 मिलियन डॉलर यानी 120 करोड़ रुपये में खरीद लिया.