“समुंदरों के पार” “मदन मोहन समर” , शेक्सपियर का गाँव, शेक्सपियर को कौन नहीं जानता
By बैतूल वार्ता 9425002492
यूके के 15 शहर व अनेक गांवों की यात्रा और मॉरीशस में भारत की सोंधी सुगन्ध का दस्तावेज “समुंदरों के पार” आपके हाथों में सौंप कर आनन्द विभोर हूँ। शिवना प्रकाशन से छपकर तैयार है आपके लिए मेरी यह यात्रा वृतांत पुस्तक “समुंदरों के पार” आइये एक अंश देखते हैं।
बर्मिंघम जाने से पहले हम स्ट्रेटफोर्ट चलेंगे। अर्थात् शेक्सपियर का गाँव। शेक्सपियर को कौन नहीं जानता। वे भले अंग्रेजी के लेखक हों लेकिन विश्व का हर साहित्य प्रेमी शेक्सपियर के नाम से रोमांचित हो जाता है। इस साहित्य मनीषी की स्मृतियां देखने उसके गाँव जाने का अवसर मिले तो फिर कहने ही क्या। आज भी मौसम बादलों से भरा हुआ था, बहुत ठंडी हवा चल रही थी। दो स्वेटर और ऊपर से मोटी जर्सी पहनने के बाद भी हवा बदन को चीरती हुई सी महसूस हो रही थी। इस सर्द मौसम में हम जा पहुंचे थे साहित्य के तीर्थ स्ट्रेटफोर्ड जो एवन नदी के किनारे पर होने से स्ट्रेटफोर्ड ऑन एवन कहलाता है। यह वार्विकशायर काउंटी का क्षेत्र है।
एक छोटा-सा किंतु बेहद साफ सुथरा कस्बेनुमा शहर है, स्ट्रेटफोर्ड ऑन एवन। यह गाँव सातवीं सदी से आस्तित्व में है। इसे एंग्लो-सेक्सन समुदाय द्वारा बसाया गया था। एवन नदी के उथले हिस्से के किनारे पर यह बसा है। इसके नाम का ही अर्थ है स्ट्रेट अर्थात् सड़क व फोर्ड अर्थात् नदी य नाले के उथले हिस्से को दर्शाने वाला जिसे पैदल य ड्राइविंग से पार किया जा सकता है। अपने शुरूआती दिन में यह शहर इसीलिये स्ट्रेटफोर्ड ऑन एवन के नाम से जाना गया और फिर एक साहित्य के ऋषि ने जब यहां जन्म लेकर शब्दों को गढ़ने का मंत्र पढ़ा तो यह विश्वप्रसिद्ध स्थान हो गया। यूके के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में शामिल यह कस्बा एक परम्परागत बसाहट से बसा है। चौराहे पर शेक्सपियर की मूर्ति लगी हुई है। फिर एक चौड़ी सड़क जिसका नाम हेनली स्ट्रीट है, भीतर जाती है जो यहां का बजार भी है और सौंदर्य भी। बस इसी जगह पर वह लकड़ी का मकान आज भी मौजूद है जहां शेक्सपियर ने जन्म लिया था। एक खास बात यह है कि यह घर शेक्सपियर के जन्म सन् 1564 से काफी पहले बना था, और संरक्षित स्थान है। यहां से एक मील दूर ही शेक्सपियर की पत्नी एनी हैथवे के गाँव शॉटरीटरी में उसका कॉटेज है। शेक्सपियर की मृत्यु न्यू प्लेस वाले मकान में हुई थी। हालांकि अब वह मकान नहीं है। यहां पर बस एक बगीचा है जो पार्यटकों के लिये उपलब्ध है। शेक्सपियर के घर में प्रवेश के लिए शुल्क लगता है, विदेशियों के लिये यह शुल्क काफी ज्यादा होता है। घर को बहुत ही व्यवस्थित रूप से रखा गया है। उनके उपयोग किये जाने वाले सामान को सलीके से सजाया गया है। निश्चित ही साहित्य के क्षेत्र में आने वाली नई पीढ़ियों के लिये यह जगह देखना किसी दिव्य दर्शन से कम नहीं है। उन सौभाग्यशाली लोगों में एक मैं भी हूँ।
“समुंदरों के पार” से
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