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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दशहरा कार्यक्रम में संतोष यादव को मुख्य अतिथि बनाकर क्या संदेश देना चाहता है?

By बैतूल वार्ता

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दशहरा कार्यक्रम में संतोष यादव को मुख्य अतिथि बनाकर क्या संदेश देना चाहता है?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस बार अपने वार्षिक दशहरा कार्यक्रम में पर्वतारोही संतोष यादव को मुख्य अतिथि बनाएगा.

संघ अपने इस अहम सालाना कार्यक्रम में पहली बार किसी महिला को मुख्य अतिथि बना रहा है. लिहाज़ा उसके इस फ़ैसले की ख़ासी चर्चा हो रही है.

दो महीने पहले ‘कृषि और समृद्धि’ पर संघ के एक कार्यक्रम में इसके सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने इसकी बैठकों में महिलाओं की कम भागीदारी पर निराशा ज़ाहिर की थी.

माना जा रहा है कि बीजेपी की ओर से महिला वोटरों को आकर्षित करने की कोशिश के बीच संघ ने भी महिलाओं को जोड़ने की रफ़्तार तेज़ करने के क्रम में यह फ़ैसला किया है. कोविड की वजह से पिछले दो साल से संघ ने अपना वार्षिक दशहरा कार्यक्रम नहीं किया था. लेकिन इस बार यह पर्वतारोही संतोष यादव को इसका मुख्य अतिथि बनाने जा रहा है.

हरियाणा के रेवाड़ी ज़िले की रहने वाली यादव दो बार एवरेस्ट फ़तह करने वाली पहली महिला हैं. संतोष यादव की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़ उनकी इस उपलब्धि को 1994 के गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में शमिल किया गया था. 54 साल की यादव को साल 2000 में पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है.

भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल (आईटीबीपी) में अफ़सर रहीं यादव आजकल बतौर योग, पर्यावरण-पारिस्थितिकी के अलावा प्राकृतिक आपदा प्रबंधन के गुर सिखाती हैं. देश के बड़े संस्थान उन्हें मोटिवेशनल स्पीकर के तौर भी बुलाते हैं.

संघ की पुरानी परंपरा

संघ अपने वार्षिक दशहरा कार्यक्रम में अलग-अलग क्षेत्र और राजनीतिक दलों के लोगों को बतौर मुख्य अतिथि बुलाता रहा है. हाल के दिनों में नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, डीआरडीओ के पूर्व डायरेक्टर जनरल विजय सारस्वत, एचसीएल चीफ़ शिव नाडर, नेपाल के पूर्व सैन्य प्रमुख रुक्मांगद कटवाल जैसी शख़्सियतों को संघ दशहरे पर होने वाले कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर बुला चुका है.

रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के नेता और दलित नेता दादासाहेब रामकृष्ण सूर्यभान गवई, वामपंथी विचारों वाले कृष्णा अय्यर और वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष जैसे नाम इस कड़ी में शामिल हो चुके हैं.

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
का 2018 में संघ के इस कार्यक्रम में शामिल होना काफ़ी चर्चा का विषय रहा था. मुखर्जी राष्ट्रपति का पद छोड़ने के बाद संघ के इस कार्यक्रम में शामिल हुए थे लेकिन दिग्गज कांग्रेस नेता होने की वजह से कार्यक्रम में शामिल होने के उनके फ़ैसले पर उनकी ही पार्टी के लोग सवाल उठा रहे थे.

ख़ुद मुखर्जी की बेटी और कांग्रेस की नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने भी उन्हें इस कार्यक्रम में न जाने की अपील की थी. हालांकि प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि राष्ट्रवाद किसी धर्म या भाषा में नहीं बंटा है. विविधता भारत की सबसे बड़ी ताक़त है. हम विविधता में एकता को देखते हैं.
संघ विरोधी विचारधारा या अपने से अलग विचारधारा वाले नेताओं और शख़्सियतों को बुला कर ये संदेश देने की कोशिश करता रहा है कि वह एक उदार, सहिष्णु और प्रगतिशील संगठन है. इसके ज़रिये वह लोगों के बीच अपने बारे में बनी धारणा में बदलाव भी करना चाहता है.

वरिष्ठ पत्रकार और आरएसएस पर कई किताबें लिख चुके विजय त्रिवेदी कहते हैं, ”संतोष यादव को संघ के विजयादशमी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनाने के बड़े राजनीतिक और सामाजिक मायने हैं. संघ की एक पारंपरिक छवि बनी हुई है. माना जाता है कि ये महिला विरोधी संगठन है या महिलाओं के लिए इसमें जगह नहीं है. इसलिए संघ के सबसे बड़े सालाना जलसे में एक महिला को मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल कर संघ ये संदेश देना चाहता है कि वह महिला विरोधी नहीं है. संघ की लगने वाली शाखाओं को छोड़ दें तो इसकी हर आनुषंगिक इकाई में महिलाओं की संख्या बढ़ी है. ”

वोट पर नज़र

संघ चुनाव नहीं लड़ता लेकिन इसके संगठन का पूरा फ़ायदा बीजेपी को मिलता है. क्या सामाजिक आधार को बढ़ाने की संघ की कोशिश का फ़ायदा बीजेपी को वोट के तौर पर मिलेगा?

बीजेपी-संघ के काम करने के तरीक़ों पर गहराई से नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं, ” संतोष यादव को बुलाया जाना काफ़ी अहम है. संघ और बीजेपी अपना सामाजिक आधार बढ़ाने में लगे हैं. बीजेपी भी महिलाओं को एक वोट बैंक के तौर पर देखती है. इसीलिए उज्ज्वला स्कीम समेत दूसरी कई लाभार्थी योजनाओं को महिलाओं को केंद्र में रख कर लाया जा रहा है. ”

सिंह कहते हैं, ”संतोष यादव को संघ के कार्यक्रम में बुलाए जाने के मामले को अलग से मत देखिए. इसे हाल के दो मामलों के साथ जोड़ कर देखना ठीक रहेगा. बीजेपी सिर्फ़ महिला ही नहीं यादव वोटरों को भी अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है. ”

सिंह आगे कहते हैं, ”पार्टी ने अपने नए संसदीय बोर्ड में सुधा यादव को शामिल किया है. यूपी से राज्यसभा में संगीता यादव को भेजा गया है और अब समाज में एक आइकन के तौर देखी जानी वाली संतोष यादव को संघ के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनाया जा रहा है. तो आप देखें कि यादव समुदाय की तीन महिलाओं को अहमियत देकर क्या संदेश दिया जा रहा है? साफ़ है कि बीजेपी की नज़र अब पूरी तरह से यादव वोटरों पर है.”

संघ में महिलाओं की भागीदारी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गठन 1925 में हुआ था. 1936 से ही संगठन में महिलाओं के लिए राष्ट्र सेविका समिति नाम की विंग है. इसका भी सांगठनिक ढांचा संघ की तरह ही है. इसकी भी शाखाएं लगती हैं. पूर्णकालिक महिला प्रचारक होती हैं. संघ शिक्षा वर्ग के नाम से वार्षिक प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाया जाता है. लेकिन संगठन के पदाधिकारियों के पद संघ के पदाधिकारियों और स्वंयसेवकों के महिला रिश्तेदारों के पास ही हैं.

हालांकि संघ का दावा है कि संगठन में महिलाओं की भागीदारी तेज़ी से बढ़ रही है.उसके मुताबिक़ राज्यों में इसके 41 संपर्क विभागों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व है.
इसके बावजूद संघ की मुख्य गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी काफ़ी कम है. विशेषज्ञों के मुताबिक़ संघ की छवि अभी भी ख़ाकी पतलून (हालांकि पतलून पहनने का फ़ैसला 2016 में लागू किया गया. इससे पहले स्वयंसेवक ख़ाकी निकर पहनते थे) पहनने वाले पुरुषों के संगठन की ही है.

महिलाओं के बारे में आरएसएस के विचार

आरएसएस देश के अलग-अलग हिस्सों में महिला सम्मेलन का आयोजन करता है. पिछले साल वाराणसी में मातृशक्ति कुंभ का आयोजन किया गया था. आरएसएस का दावा है कि इसमें बड़ी तादाद में महिलाओं ने हिस्सा लिया था.

संघ ने कई बार बीजेपी और दूसरे सहयोगी संगठनों के नेताओं के बयानों पर अपना रुख़ ज़ाहिर कर ये जताने की कोशिश की है महिलाओं को लेकर उसके विचार पुरातनपंथी नहीं है.

2015 में जब बीजेपी नेता साक्षी महाराज ने हिंदू महिलाओं से ज़्यादा बच्चे पैदा करने को कहा था तो आरएसएस चीफ़ मोहन भागवत ने इस बयान से संघ को अलग कर लिया था. उन्होंने कहा था, ” हमारी माताएं बच्चे पैदा करने की फ़ैक्टरी नहीं हैं. बच्चा पैदा करना व्यक्तिगत निर्णय है.”

विजय त्रिवेदी कहते हैं, ”पिछले दिनों संघ की एक बड़ी बैठक हुई थी. इसमें भी महिलाओं को बड़ी तादाद में बुलाया गया था. संघ में महिलाओं की भूमिका बढ़ाने की लगातार कोशिश हो रही है. मेरा मानना है कि संतोष यादव को विजयादशमी कार्यक्रम में आमंत्रण देना इसकी एक बड़ी कड़ी है.”

त्रिवेदी आगे कहते हैं, ”विदेश में संघ का काम हिंदू स्वयंसेवक संघ कर रहा है. वहां उनकी पारिवारिक शाखाएं होती हैं. इसमें महिलाएं भी आती हैं. भारत में तो ये इतनी जल्दी नहीं होने वाला लेकिन संघ इस बात से परेशान है इसके ऊपर लगा महिला विरोधी टैग जल्द से जल्द हटे. ”

लेकिन प्रदीप सिंह इसके राजनीतिक मायनों पर ज़ोर देते हैं. वो साफ़ कहते हैं कि इसके ज़रिये संघ और बीजेपी यादव समाज को जोड़ने की कोशिश में लगा है.

वह कहते हैं, ”संघ भले ही ख़ुद को राजनीतिक संगठन न कहता हो लेकिन इसके और बीजेपी के रिश्ते जगज़ाहिर हैं. संघ जो सामाजिक आधार तैयार करता है उसका चुनावी फ़ायदा बीजेपी को होता है. हाल में यूपी में मुलायम सिंह के क़रीबी रहे यादवों के बड़े नेता हरमोहन यादव की बरसी पर आयोजित कार्यक्रम को पीएम मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये संबोधित किया था.

प्रदीप सिंह कहते हैं, ”अभी तक बीजेपी की नज़र अति पिछड़े वोटों पर थीं. लेकिन अब वह पूरे पिछड़े वोटरों को अपने दायरे में समेटने की कोशिश में लगी है. संतोष यादव को संघ के विजयादशमी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया जाना पार्टी की इसी स्ट्रेटजी का हिस्सा है.”

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