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जीवन को आदर्श बनाना है तो इंद्रियों को संयमित करना सीखें: पं. सुखदेव शर्मा

By बैतूल वार्ता

जीवन को आदर्श बनाना है तो इंद्रियों को संयमित करना सीखें: पं. सुखदेव शर्मा
भूत भविष्य के चक्कर में पड़कर वर्तमान को खराब ना करें
भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के तीसरे दिन श्रद्धालुओं ने किया सृष्टि वर्णन के साथ कपिल अवतार की कथा का रसपान

बैतूल। वर्तमान में जियो। अतीत एक सपना है और भविष्य एक कल्पना है। वर्तमान ही जीवन है। केवल वर्तमान ही आपके हाथों में है और इसी में हम सब को जीना है। वर्तमान में जीने का मतलब है, परमात्मा यानी सत्य के साथ जीना। इसे ही धर्म कहा गया है। इसलिए वर्तमान को पूरे उत्साह, उमंग, उल्लास के साथ जियो। इससे बढ़कर जीवन में कुछ भी नहीं। यह जीवन निर्माण की आधारशिला है।
उक्त उद्गार कथावाचक पंडित सुखदेव शर्मा ने गुरुवार को श्रीकृष्ण पंजाब सेवा समिति के तत्वाधान में रामलीला मैदान में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस व्यासपीठ से व्यक्त किए। पंडित शर्मा ने गुरुवार भागवत कथा के तीसरे दिन श्रद्धालुओं को सृष्टि वर्णन के साथ ही कपिल अवतार की कथा का रसपान कराया। श्रद्धालुओं को उन्होंने जीवन उपयोगी सीख देते हुए कहा कि व्यर्थ की चिंता करना छोड़ो, हमारा वर्तमान समय व्यर्थ में ना चले जाए, जिसने समय का सदुपयोग किया उसका भूतकाल श्रेष्ठ होगा और भविष्य भी उज्जवल होगा, इसलिए वर्तमान सुधारिए।
–चिंता को मिटाओ और चिंतन को बढ़ाओ–
व्यासपीठ से उन्होंने अष्टांग योग का सार सुनाते हुए कहा कि अपने मन को गोविंद के चरणों में बांध लो क्योंकि मन बड़ा चंचल है और यही बंधन का कारण है। मन को जीतना है तो पहले स्वयं को जीतो, इंद्रियों को जिसने संयमित नहीं किया उसका जीवन आदर्श नहीं बन सकता। पूरा संसार परमात्मा का रूप है, चिंता को मिटाओ और चिंतन को बढ़ाओ, चिंता संसार की होती है और चिंतन भगवान का होता है, चिंतन बढ़ेगा तो धीरे-धीरे मन परमात्मा में लगेगा, मन की चंचलता समाप्त हो जाएगी। पंडित शर्मा ने कहा कि चिंतन के तप से ही ब्रह्मा जी ने स्वयं को पहचाना और भगवान के आशीर्वाद से संसार की रचना की।
–भागवत कथा के चार अर्थ–
पंडित शर्मा ने कहा कि भागवत के चार अर्थ होते हैं पहला जो भगवान का हो जाए वह भागवत है, दूसरा भगवान के भक्तों का नाम भागवत है, तीसरा भगवान के निवास स्थान का नाम भागवत है, चौथा भगवान को उपदेश का नाम ही भागवत है। इसके अलावा उन्होंने कहा भगवान के प्रिय जनों का नाम भी भागवत है इसलिए वह भगवान से संबंध जोड़कर भागवत का हो जाता है। भगवान भक्तों की उम्र, जाति, ज्ञान, धन, डिग्री नहीं देखते, वह केवल कर्म देखते हैं। विदुर जी को कर्म, भक्ति, विश्वास के कारण ही भगवान ने दुर्योधन के छप्पन भोग छोड़कर विदुर जी के यहां भोजन किया। यह संसार में जो कुछ हम भोंगते वह अपने कर्म और प्रारब्ध के अनुसार भोंगते हैं। हम पहले क्या कर चुके इसकी चिंता मत करो, आगे क्या करना है इसका भी विचार मत करो, केवल विचार करो हमारा वर्तमान समय व्यर्थ में ना चला जाए। जिसने समय का सदुपयोग किया उसका भूतकाल श्रेष्ठ होगा और भविष्य उज्जवल होगा।
–श्री कृष्ण जन्म की लीला आज–
श्री कृष्ण पंजाब सेवा समिति से मिली जानकारी के अनुसार कथा प्रतिदिन दोपहर 1 बजे से 4 बजे तक आयोजित की जा रही है। भागवत कथा के चतुर्थ दिवस आज शुक्रवार को श्री कृष्ण जन्म की लीलाओं का वर्णन किया जाएगा। श्री कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा।

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