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इस तस्वीर को क्या नाम दें ….? बारिश में टापू में बदल जाता हैं ये गांव:दो नदियों से घिरे गोरखी ढाना के लोग चार महीने घरों में हो जाते हैं कैद

By वामन पोटे

इस तस्वीर को क्या नाम दें ….?
बारिश में टापू में बदल जाता हैं ये गांव:दो नदियों से घिरे गोरखी ढाना के लोग चार महीने घरों में हो जाते हैं कैद

इस तस्वीर को क्या नाम दें ….?

मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने  ग्रामीणों ने दो बरस पहले  कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन
बाढ़ में स्कूल जाती छात्राएं
सरकारी साइकिल वापस करने दो बरस पहले कलेक्टर के दरबार पहुँची थी

बैतूल।।यह तस्वीर मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के आदिवासी भीमपूर ब्लाक से आई है ।इस देश का यही दुर्भाग्य है कि कस्बाई बस्तियों की सिसकियाँ सन्नाटौ में  कैद होकर रह जातीं है। हमारा सिस्टम 21 वी शताब्दी की इस चकाचौंध में भी आज भी  कोसों दूर है ….
सवाल यह नहीं है की आदिवासी स्कूली  बच्चे  जिला कलेक्टर के पास सरकारी साइकिल वापस करने आये ।सवाल तो यह है कि बीते 17 सालों में विकासशील मध्यप्रदेश की यह बदरंग तस्वीर भी गांव से शहर तक पहुच गई । सवाल यह है कि  आजादी के 75 साल बाद भी आदिवासी गांवो में सड़क का इंतजाम नही हो सका।जिन राजनेताओ को विकास करने के नाम पर वोट दिए और   विकास ,सतर्कता और सुरक्षा के लिए जवाबदेही जिस तंत्र को सौंपी गई है वो इतने संवेदनहीन और निष्ठुर क्यों बन रहे…?
इस बदरंग तस्वीर को क्या नाम दें ….?

एक तरफ तो देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है वहीं दूसरी तरफ लोग आज भी बदहाली का शिकार हो रहे हैं। बैतूल के ग्रामीण इलाकों में लोग सड़क बिजली और आवागमन की सुविधाओं के आभाव में बेबसी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। सुविधाओ के अभाव की यह तस्वीर बैतूल के भीमपुर की हैं। यहां उत्ती और गोरखी ढाना इलाके आज भी बारिश होते ही टापू में तब्दील हो जाते हैं। दो नदियों से घिरे गोरखी ढाना के रहवासी चार महीने घरों में कैद होकर रह जाते हैं।

ढाई हजार की आबादी वाली पंचायत उत्ती भीमपुर की सुदूर इलाके वाली पंचायत है। इसका गोरखीढाना गांव ताप्ती नदी के किनारे बसा हुआ है। जबकि इसके दूसरी ओर गुपतवाड़ा चांदू नदी रास्ते को रोक लेती है। ग्रामीणों को बैतूल आना हो या फिर राशन लेने उत्ती जाना हो, दोनों ही सूरतों में उन्हें ताप्ती नदी पार करना होता हैं। अगर ब्लॉक या तहसील जाना हो तो गुपतवाडा चांदू नदी रास्ते में पड़ती है। बारिश के दिनों में दोनो नदियों का जलस्तर बढ़ा होने और बाढं जैसी स्थिति के चलते नदियों को पार करना ग्रामीणों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होता है। जान जोखिम में डालकर नदी पर करना बहुत मुश्किल होता है। हाल ही में पंचायत चुनाव के मतदान के लिए दल को यहां पहुंचने के लिए बेहद मश्क्कत करना पड़ी। यहां 1186 वोटर हैं।
एक महीने से स्कूल नहीं गए बच्चे
गोरखी ढाना में रहने वाले ग्रामीणों के बच्चे उत्ती के मिडिल और हाईस्कूल में पढ़ते है। यहां पहुंचने के लिए बच्चों को ताप्ती नदी पार करना होता है। पिछले एक महीने से नदी बाढ़ के चलते पानी से भरी हुई है। ऐसे में बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। राशन लेने के लिए भी गांव वालों को इसी नदी को पार करना पड़ता है। गांव के सरपंच सुभाष धुर्वे का कहना है कि नदी ने उनका रास्ता ही नहीं रोका है बल्कि उनका विकास भी अवरूद्ध कर दिया है।
विधायक ,कलेक्टर भी देख चुके हालात
भैंसदेही के विधायक धरमुसिंह ग्रामीणों की इस समस्या को देख चुके है। वे पिछले साल बारिश के दिनों में गोरखी ढाना तक नदी पार कर ट्रेक्टर से गए थे। जिसके बाद उन्होंने प्रशासन से यहां पुल बनवाने की मांग की थी। जिस पर यहां साठ मीटर लंबे पुल बनाए जाने की तकनीकी स्वीकृति भी मिल चुकी है। वित्तीय और प्रशासकीय स्वीकृति न हो पाने के चलते यह प्रक्रिया जहां के तहां रुकी हुई है। कलेक्टर एक करोड़ 12 लाख की लागत से बनने वाले इस पुल को माइनिंग फंड से बनवाने का प्रयास कर रहे है लेकिन इसके पीछे प्रशासनिक अड़चने आ रही है। यही वजह है की ग्रामीणों की यह समस्या हल नहीं हो पा रही है।

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