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बोले, ‘ये दुई रुपये तो इस रिक्शा वाले के लिए और दस रुपये तुम्हें देने हैं, आज राखी है ना! तुम्हें भी तो राखी बंधवाने के पैसे देने होंगे।’

By Betul Varta

जब बहन ‘महादेवी’ से ही पैसे मांग ‘निराला’ ने उन्हें दी राखी बंधवाई
निराला जी सरलता से बोले, ‘ये दुई रुपये तो इस रिक्शा वाले के लिए और दस रुपये तुम्हें देने हैं, आज राखी है ना! तुम्हें भी तो राखी बंधवाने के पैसे देने होंगे।’

मेरे भैया, मेरे चंदा, मेरे अनमोल रतन…। 1965 में बनी फिल्म ‘काजल’ का यह गीत आज भी रक्षाबंधन पर घर-घर गूंजता है। उस दौर में भाई-बहन के रिश्तों में कितनी मिठास हुआ करती थी। इसका अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि यातायात के साधन कम होने के बावजूद उस दौर में भाई राखी बंधवाने बहनों के पास देश में चाहे कहीं भी हों पहुंच ही जाते थे।

हिल स्टेशन रामगढ़ में महादेवी वर्मा सृजन पीठ की स्थापना में प्रमुख योगदान देने वाले प्रोफेसर लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’ बताते हैं कि महादेवी रामगढ़ में 1937 से 1965 तक लगातार गर्मियों में आती रहीं।

यहीं रहकर उन्होंने अतीत के चलचित्र, कविता संग्रह दीपशिक्षा समेत कई रचनाएं लिखी थीं। हालांकि वह ज्यादातर रक्षाबंधन इलाहाबाद में ही मनाती थीं। तब महादेवी वर्मा के यहां उनके मुंहबोले भाई प. बंगाल के सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, उत्तराखंड के सुमित्रानंदन पंत, वाराणसी के जयशंकर प्रसाद समेत कई जाने-माने साहित्यकार पहुंचते थे। साहित्य जगत में वह अकेली बहन थीं, जिन्होंने भाई-बहन के रिश्तों की डोर को स्नेह से सींच कर अटूट बनाया था।

जब महादेवी से कहा, दीदी जरा 12 रुपये देना

प्रोफेसर बटरोही के मुताबिक महादेवी वर्मा के मुंहबोले भाइयों में निराला जी सबसे करीब थे। उन्हें तत्कालीन केंद्र सरकार हर महीने 100 रुपये पेंशन देती थी, लेकिन रोज किसी न किसी जरूरतमंद को पैसे बांटकर वह फक्कड़ हो जाते थे। बाद में उनके पैसे को सहेजने के लिए महादेवी जी को कोषाध्यक्ष बनाया गया।

1950-51 में रक्षा बंधन के दिन सुबह-सुबह निराला जी जब इलाहाबाद पहुंचे तो उनके पास रिक्शा वाले को देने के लिए भी पैसे नहीं थे। बहन के दरवाजे पर पहुंचते ही बोले- दीदी, जरा 12 रुपये लेकर आना।

महादेवी रुपये ले आईं, लेकिन पूछा- ‘यह तो बताओ, आज 12 रुपये की क्या जरूरत आन पड़ी।’ निराला जी सरलता से बोले, ‘ये दुई रुपये तो इस रिक्शा वाले के लिए और दस रुपये तुम्हें देने हैं। आज राखी है ना! तुम्हें भी तो राखी बंधवाने के पैसे देने होंगे।’

महादेवी ने राखी में की स्त्री-पुरुष बराबरी की शुरुआत

प्रोफेसर बटरोही कहते हैं कि जमाने के साथ-साथ रक्षा बंधन मनाने के तौर-तरीकों में भी बदलाव आया है। अब रिश्ते की प्रगाढ़ता पर कम और दिखावे पर ज्यादा जोर है। साहित्य जगत में महादेवी जैसी स्नेहमयी दीदी की कमी आज भी खल रही है।

रक्षा बंधन पर सुमित्रा नंदन पंत और महादेवी वर्मा ने एक-दूसरे को राखी बांधकर साहित्य जगत में स्त्री-पुरुष बराबरी की नई प्रथा शुरू की थी। महादेवी के इसी स्नेहपूर्ण व्यवहार के चलते ही उन्हें ‘आधुनिक काल की मीराबाई’ कहा जाता है। कवि निराला ने उन्हें ‘हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती’ की उपाधि दी थी।

(साभार अमर उजाला)

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