घोघरी, मेढ़ा और गढ़ा बांध के निर्माण का मामला – गढ़ा बांध यदि बन जाता है तो इसमें गेट इसीलिए नहीं लगाए जा सकेंगे क्योंकि बिना फॉरेस्ट क्लियरेंस के इन जमीनों को डुबाया नहीं जा सकता
बैतूल वार्ता
छोटे-बड़े झाड़ के जंगल की जमीनों का क्लियरेंस लिए बिना बांधों का काम शुरू कर दिया, खसरे छोड़कर काम करने की बात कह रहा जलसंसाधन विभाग, क्लियरेंस नहीं मिला तो बांधों में पानी रोकना होगा मुश्किल
– घोघरी, मेढ़ा और गढ़ा बांध के निर्माण का मामला – गढ़ा बांध यदि बन जाता है तो इसमें गेट इसीलिए नहीं लगाए जा सकेंगे क्योंकि बिना फॉरेस्ट क्लियरेंस के इन जमीनों को डुबाया नहीं जा सकता है।
बैतूल। जलसंसाधन विभाग ने जिले में बड़े-बड़े बांधों का निर्माण तो शुरू करवा दिया है लेकिन इन बांधाें के डूब क्षेत्र में जो खसरे आ रहे हैं उनमें से 32 खसरे ऐसे हैं जो कि छोटे-बड़े झाड़ के जंगल के हैं। इनका क्लियरेंस और हस्तांतरण किए बिना ही जलसंसाधन विभाग ने आनन-फानन में काम शुरू कर दिया। अब इन खसरों को छोड़-छोड़कर काम करना पड़ रहा ह, यहां तक कि गढ़ा बांध यदि बन भी जाता है तो इसमें गेट इसीलिए नहीं लगाए जा सकेंगे क्योंकि बिना क्लियरेंस के इन जमीनों को डुबाया नहीं जा सकता है। इससे बांधों की रफ्तार पर असर आएगा। इस मामले को मंडला जिले के निवास विधानसभा के विधायक डॉ अशोक मर्सकोले ने भी उठाया है , उन्होंने वन मंत्रालय भारत सरकार तक इस मामले में शिकायत की है और यह मामला उठाया है कि जंगल मद की जानकारी छिपाकर बांध का निर्माण शुरू करवा दिया गया जो कि बड़ी गलती है। विधायक डॉ अशोक मर्सकोले ने भूपेन्द्र यादव पर्यावरण , वन एवं जलवायु मंत्री भारत सरकार को पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने लिखा है कि बैतूल जिले में जलसंसाधन विभाग की ओर से मेढ़ा, घोघरी और गढ़ा बांध बनाए जा रहे हैं।इन जलायायों के लिए राजस्व ग्रामों की मिसल बंदोबस्त , निस्तार पत्रक , अधिकार अभिलेख और मैनुअल खसरा पंजी वर्ष 2004- 2005 में बड़े झाड़ के जंगल, छोटे झाड़ के जंगल मद में दर्ज जमीनों की वन संरक्षण कानून 1980 के अनुसार अनुमति प्रकरण बनाए बिना ही ठेकेदारों से अनुबंध कर लिया गया कार्य आदेश जारी कर कार्य प्रारंभ करवा दिया गया। इन जलाशयों की पर्यावरणीय अनुमति लिए जाने के बनाए गए प्रकरणों में बड़े झाड़ , छोटे झाड़ के जंगल मद में दर्ज जमीनों से संबंधित कोई भी ब्यौरा उल्लेखित हीनहीं किया और सभी जानकारी छुपाकर अनुमति प्राप्त कर ली गई। बैतूल जिले में इन तीनों ही बांधों में वर्ष 1910 से बड़े झाड़, छोटे झाड़ के जंगल मद में दर्ज जमीनों को शासकीय राजस्व भूमि दर्शाकर मिसल बंदोबस्त, निस्तार पत्रक , अधिकार अभिलेख और वर्ष 2004-05 तक की खसरा पंजी में दर्ज बड़े झाड़, छोटे झाड़ के जंगल मद के ब्यौरे को छुपा लिया ग या। घोघरी बांध में 216.816, गढ़ा बांध में 113.47 हेक्टेयर और मेढ़ा बांध में 121.86 हेक्टेयर शासकीय भूमि दर्शाई गयी है। हमारा अनुरोध है कि भारत सरकार के कानून और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के उल्लंघन , अवहेलना , अवमानना के इस मामले में तुरंत विधिवत जांच करवाई जाकर जल संसाधन विभाग के अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाए। प्रधान वन संरक्षण ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया, हाल ही में जांच के लिए लिखा हाल ही में इस मामले में प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने दक्षिण वनमंडल काे पत्र लिखा है कि डाॅ अशाेक मर्सकाेले विधायक का शिकायती पत्र प्राप्त हुआ है। शिकायती पत्र में दर्शाई गयी जल संसाधन विभाग की मेढ़ा और घोघरी जलाशय परियोजना में प्रभावित होने वाली वनभूमि की जांच राजस्व अधिकारियों से करवाने का कष्ट करने की बात लिखी है । पत्र में लिखा गया है कि यह सुनिश्चित करे कि इस परियोजना में छोटे -बड़े झाड़ के जंगल मद में दर्ज भूमि का उपयोग शासकीय राजस्व भूमि दर्शकर तो नहीं किया गया है। क्योंकि छोटे-बड़े झाड़ के जंगल मद में दर्ज भूमि पर निर्माण किया है तो यह वन संरक्षण अधिनियम 1980 का उल्लंघन होगा। 32 खसरे जिन्हें चाहिए क्लियरेंस गढ़ा बांध एरिया को ही लें तो 8 खसरे की जमीनें छोटे और बड़े झाड़ के जंगल मद में दर्ज हैं। इसके अलावा डूडाबोरगांव, हिवरखेड़ी, अखतवाड़ा, पाढरखुर्द, डोकिया के 24 खसरे भी इस तरह की जमीनों के हैं। वर्जन – बांध क्षेत्र में आ रही जो जमीनें छोटे और बड़े झाड़ के जंगल की हैं उनके फॉरेस्ट क्लियरेंस और हस्तांतरण की प्रक्रिया चल रही है। शासन की प्रक्रिया के हिसाब से वन प्रकरण बना दिए गए हैं पूरे प्रक्रिया में है। हस्तानांतरण की कार्रवाई नियमानुसार जल्द पूरीहो जाएगी । प्रोजेक्ट काफी बड़े हैं हम उन खसरे-रकबों की जमीन पर फिलहाल काम नहीं कर रहे हैं जो छोटे और बड़े झाड़ के जंगल की है। केवल कुछ खसरे रकबों के लिए पूरे प्रोजेक्ट को लेट नहीं किया जा सकता है। गढ़ा बांध में हमने उस समय तक गेट नहीं लगाने का निर्णय लिया है जब तक यहां डूब में आ रही जमीनों को फॉरेस्ट क्लियरसेंस नहीं मिल जाता है। – एके डेहरिया, ईई, जलसंसाधन विभाग